SHAYARI STATUS 2022
1. लोग कहते है रात बीत चुकी,
मुझ को समझाओ! मैं शराबी हूँ।
2. साँस लेना कोई दलील नही,
मैं नही मानता ज़िंदा हूँ मैं।
3. मैं जब औसान अपने खोने लगता हूँ तो हँसता हूँ।
मैं तुमको याद करके रोने लगता हूँ तो हँसता हूँ।
4. हाँ ठीक है मैं अपनी अना का मरीज़ हूँ
आख़िर मिरे मिज़ाज में क्यूँ दख़्ल दे कोई
5. दर्द-मंदी की मत सज़ा पाओ।
अब तो तुम मुझसे तंग आ जाओ।।
6. कौन हूँ, कहाँ हूँ, क्या हूँ, क्या नहीं हूँ मैं
खुद से खुद पे दस्तक दी और कह दिया "नही हूँ मैं"
7. शर्म, दहशत, झिझक, परेशानी
नाज़ से काम क्यों नहीं लेती
आप, वो, जी, मगर यह सब क्या है
तुम मेरा नाम क्यों नहीं लेती
8. किस लिए देखती हो आईना
तुम तो ख़ुद से भी ख़ूबसूरत हो
9. तुम जब आओगी तो खोया हुआ पाओगी मुझे
मेरी तन्हाई में ख़्वाबों के सिवा कुछ भी नहीं
मेरे कमरे को सजाने की तमन्ना है तुम्हें
मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं
इन किताबों ने बड़ा ज़ुल्म किया है मुझ पर
इन में इक रम्ज़ है जिस रम्ज़ का मारा हुआ ज़ेहन
मुज़्दा-ए-इशरत-ए-अंजाम नहीं पा सकता
ज़िंदगी में कभी आराम नहीं पा सकता
10. हम तो वो हैं जो खूदा को भूल गये
तू मेरी जान, किस गुमान में है?
11. देख लो मैं क्या कमाल कर गया हूँ
ज़िंदा भी हूँ और इन्तेकाल कर गया हूँ
12. है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
वर्ना कुछ लज़्ज़त-ए-हयात नहीं
क्या इजाज़त है एक बात कहूँ
वो मगर ख़ैर कोई बात नहीं
Jaun Elia Ghazals ( जॉन एलिया ग़ज़ल )
1. अपनी मंज़िल का रास्ता भेजो
जान हम को वहाँ बुला भेजो
क्या हमारा नहीं रहा सावन
ज़ुल्फ़ याँ भी कोई घटा भेजो
नई कलियाँ जो अब खिली हैं वहाँ
उन की ख़ुश्बू को इक ज़रा भेजो
हम न जीते हैं और न मरते हैं
दर्द भेजो न तुम दवा भेजो
धूल उड़ती है जो उस आँगन में
उस को भेजो सबा सबा भेजो
ऐ फकीरों गली के उस गुल की
तुम हमें अपनी ख़ाक-ए-पा भेजो
शफ़क़-ए-शाम-ए-हिज्र के हाथों
अपनी उतरी हुई क़बा भेजो
कुछ तो रिश्ता है तुम से कम-बख़्तों
कुछ नहीं कोई बद-दुआ' भेजो
2. शर्मिंदगी है हम को बहुत हम मिले तुम्हें
तुम सर-ब-सर ख़ुशी थे मगर ग़म मिले तुम्हें
मैं अपने आप में न मिला इस का ग़म नहीं
ग़म तो ये है के तुम भी बहुत कम मिले तुम्हें
है जो हमारा एक हिसाब उस हिसाब से
आती है हम को शर्म के पैहम मिले तुम्हें
तुम को जहान-ए-शौक़-ओ-तमन्ना में क्या मिला
हम भी मिले तो दरहम ओ बरहम मिले तुम्हें
अब अपने तौर ही में नहीं तुम सो काश के
ख़ुद में ख़ुद अपना तौर कोई दम मिले तुम्हें
इस शहर-ए-हीला-जू में जो महरम मिले मुझे
फ़रियाद जान-ए-जाँ वही महरम मिले तुम्हें
देता हूँ तुम को ख़ुश्की-ए-मिज़गाँ की मैं दुआ
मतलब ये है के दामन-ए-पुर-नम मिले तुम्हें
मैं उन में आज तक कभी पाया नहीं गया
जानाँ जो मेरे शौक़ के आलम मिले तुम्हें
तुम ने हमारे दिल में बहुत दिन सफ़र किया
शर्मिंदा हैं के उस में बहुत ख़म मिले तुम्हें
यूँ हो के और ही कोई हव्वा मिले मुझे
हो यूँ के और ही कोई आदम मिले तुम्हें
3. यह गम क्या दिल की आदत है? नहीं तो
किसी से कुछ शिकायत है? नहीं तो
है वो इक ख्वाब-ए-बे ताबीर इसको
भुला देने की नीयत है? नहीं तो
किसी के बिन किसी की याद के बिन
जिए जाने की हिम्मत है ? नहीं तो
किसी सूरत भी दिल लगता नहीं? हाँ
तू कुछ दिन से यह हालत हैं? नहीं तो
तेरे इस हाल पर हैं सब को हैरत
तुझे भी इस पर हैरत है? नहीं तो
वो दरवेशी जो तज कर आ गया.....तू
यह दौलत उस की क़ीमत है? नहीं तो
हुआ जो कुछ यही मक़्सूम था क्या
यही सारी हकायत है ? नहीं तो
अज़ीयत नाक उम्मीदों से तुझको
अमन पाने की हसरत है? नहीं तो
3. किसी लिबास की ख़ुशबू जब उड़ के आती है
तेरे बदन की जुदाई बहुत सताती है
तेरे बगैर मुझे चैन कैसे पड़ता है
मेरे बगैर तुझे नींद कैसे आती है
रिश्ता-ए-दिल तेरे ज़माने में
रस्म ही क्या निभानी होती
मुस्कुराए हम उससे मिलते वक्त
रो न पड़ते अगर खुशी होती
दिल में जिनका कोई निशाँ न रहा
क्यों न चेहरो पे वो रंग खिले
अब तो ख़ाली है रूह जज़्बों से
अब भी क्या तबाज़ से न मिले
4. ईज़ा-दही की दाद जो पाता रहा हूँ मैं
हर नाज़-आफ़रीं को सताता रहा हूँ मैं
ऐ ख़ुश-ख़िराम पाँव के छाले तो गिन ज़रा
तुझ को कहाँ कहाँ न फिराता रहा हूँ मैं
इक हुस्न-ए-बे-मिसाल की तमसील के लिए
परछाइयों पे रंग गिराता रहा हूँ मैं
क्या मिल गया ज़मीर-ए-हुनर बेच कर मुझे
इतना कि सिर्फ़ काम चलाता रहा हूँ मैं
रूहों के पर्दा-पोश गुनाहों से बे-ख़बर
जिस्मों की नेकियाँ ही गिनाता रहा हूँ मैं
तुझ को ख़बर नहीं कि तिरा कर्ब देख कर
अक्सर तिरा मज़ाक़ उड़ाता रहा हूँ मैं
शायद मुझे किसी से मोहब्बत नहीं हुई
लेकिन यक़ीन सब को दिलाता रहा हूँ मैं
इक सत्र भी कभी न लिखी मैं ने तेरे नाम
पागल तुझी को याद भी आता रहा हूँ मैं
जिस दिन से ए'तिमाद में आया तिरा शबाब
उस दिन से तुझ पे ज़ुल्म ही ढाता रहा हूँ मैं
अपना मिसालिया मुझे अब तक न मिल सका
ज़र्रों को आफ़्ताब बनाता रहा हूँ मैं
बेदार कर के तेरे बदन की ख़ुद-आगही
तेरे बदन की उम्र घटाता रहा हूँ मैं
कल दोपहर अजीब सी इक बे-दिली रही
बस तीलियाँ जला के बुझाता रहा हूँ मैं
5. कितने ऐश उड़ाते होंगे कितने इतराते होंगे
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा,
यूँ ही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
बंद रहे जिन का दरवाज़ा ऐसे घरों की मत पूछो,
दीवारें गिर जाती होंगी आँगन रह जाते होंगे
मेरी साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएंगे,
यानी मेरे बाद भी यानी साँस लिये जाते होंगे
यारो कुछ तो हाल सुनाओ उस की क़यामत बाहों की,
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
यारो कुछ तो बात बताओ उस की क़यामत बाहों की,
वो जो सिमटते होंगे इन में वो तो मर जाते होंगे
6. एक हुनर है जो कर गया हूँ मैं
सब के दिल से उतर गया हूँ मैं
कैसे अपनी हँसी को ज़ब्त करूँ
सुन रहा हूँ के घर गया हूँ मैं
क्या बताऊँ के मर नहीं पाता
जीते जी जब से मर गया हूँ मैं
अब है बस अपना सामना दरपेश
हर किसी से गुज़र गया हूँ मैं
वो ही नाज़-ओ-अदा, वो ही ग़मज़े
सर-ब-सर आप पर गया हूँ मैं
अजब इल्ज़ाम हूँ ज़माने का
के यहाँ सब के सर गया हूँ मैं
कभी खुद तक पहुँच नहीं पाया
जब के वाँ उम्र भर गया हूँ मैं
तुम से जानां मिला हूँ जिस दिन से
बे-तरह, खुद से डर गया हूँ मैं
कू–ए–जानां में सोग बरपा है
के अचानक, सुधर गया हूँ मैं
7. तुझ में पड़ा हुआ हूँ हरकत नहीं है मुझ में
हालत न पूछियो तू हालत नहीं है मुझ में
अब तो नज़र में आ जा बाँहों के घर में आ जा
ऐ जान तेरी कोई सूरत नहीं है मुझ में
ऐ रंग रंग में आ आग़ोश-ए-तंग में आ
बातें ही रंग की हैं रंगत नहीं है मुझ में
अपने में ही किसी की हो रू-ब-रूई मुझ को
हूँ ख़ुद से रू-ब-रू मैं हिम्मत नहीं है मुझ में
अब तो सिमट के आ जा और रूह में समा जा
वैसे किसी की प्यारे वुसअत नहीं है मुझ में
शीशे के इस तरफ़ से मैं सब को तक रहा हूँ
मरने की भी किसी को फ़ुर्सत नहीं है मुझ में
तुम मुझ को अपने रम में ले जाओ साथ अपने
अपने से ऐ ग़ज़ालो वहशत नहीं है मुझ में
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